उड़ान – मैं अब उड कर रहुंगी
मैं उड़ना चाहती हूँ
लेकिन उन्होंने मेरे पंख काट दिए
फिर भी मैं इतनी जल्दी हार नहीं मानूंगी
क्यु लोग मुझे ज़ंजीर के साथ बाँध देना चाहते है
मैं अपना खुद का आकाश चाहती हूं
जहां न केवल मैं सपने देख सकूं
बल्कि अपने सपनों को सच कर सकूं
लोग कहते हैं, ऐसे मत बैठो
एसे कपड़े नहीं पहनते
बाहर मत जाओ
और पता नहीं क्या क्या
मुझे आज़ादी चाहिए
मैं पढना चाहती हूँ
मैं इस खूबसूरत दुनिया में घूमना चाहती हूं
मैं नई चीजें सीखना चाहती हूं
मैं अपना जीवन अपने तरीके से जीना चाहती हूं
लेकिन याह कम्बट दुनीया मुझे जीने नहि डेती
अब तो मुझे घोटन म्होसोस होन लागी है
अब मैं सिर्फ अपने लिए जीना चाहती हूं
खूद की पेहचान चहाती हू
खुदा का आदर-सम्मान चहाती हू
खूद के लिये आगे बधना चाहती हु
अब मैंने कईयों की बात सुनी
और नहीं मैं किसी की नहीं सुनूंगी
मैंने फैसला कर लीया है
मैं वही करूंगी जो मुझे खुश करटा है
मैं वही करूंगी जो मुझे सही लगता है
अब मैं उड़ जाऊंगी
बिना पंख के
मुझे कोई नहीं रोक सकता
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Thanks Brinda
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Hey Riya!
Your poem is expressing every girl’s aspirations and dreams which is praiseworthy. I just have suggestion for you that please avoid spelling errors if possible as it is becoming difficult to understand.
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