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मानसिक रोग कोई पागलपन नहीं!

क्या देखा कभी, मानसिक रोगी समाज में दिखते नहीं
क्योंकि उन्हें समाज के सब जैसे अधिकार मिलते नहीं
खुद ही मजाक बन जाए या खुद का मजाक बनवाये,
पर क्यों ही वह खुद को पागल कहलवाए
बताकर वह नहीं कराना चहाते अपना अपमान
डर कहीं खो न जाए उनको मिला है जो सम्मान
उनका ये सब सोचना भी ग़लत नहीं
मुश्किल है भुलाना जो बातें घरवालों ने कहीं
कैसे वह किसी को बतलाए
कि घूम रहे हैं अपनी पहचान छुपाए
अंधेरे ने जिंदगी को जकड़ लिया है
भूल चुके उसे जो रोशनी नामक दिया है
ऐसे में किसी का साथ नहीं
न बढ़ा पाता वह अपना हाथ ही
डर है इस खोखले समाज का
परिवार को अपनी लाज का
मगर मानसिक रोग कोई पागलपन नहीं
सोचो ज़रा, स्वस्थ मस्तिष्क होना-ग़लत है या सही?
समाज बदले अपनी सोच को
ताकि चुप्पी तोड़ सके अपनी वो
समझे उन्हें और दें उनका साथ
ज़रा एक बार थामें उनका हाथ।

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25 Points

Written by Nidhi Dahiya

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Amna Alim

it’s amazing!!!!

Lutfia Khan

this is brilliant!!

Aastha Kothari

This is so beautifully written!

Jyoti

Well written, great

Kuldeep

Wow. This is amazing.

Monu malik

Good poem keep it up

Ankit

Nice

Sheetal Malik

Keep it up diii

Brinda S

wow!

Mohit Dahiya

Amazing

Riya Rajkotiya

Beautiful ❤️❤️❤️

Kritika Bhair

Amazingly written

Sushmitha Subramani

Best Hindi poem I have ever read. Very impressive.

Sushmitha Subramani

The last line is so beautiful and powerful.
Well done.

Jigyasa vashistha

Thanks alot for this article. Sending you positive vibes✨❤

Aakriti Lajpal

Hey Nidhi!
Wow girl!
I have found your poem exceptional. It is making me to read it multiple times even.
Keep sharing such content with us.
Thanks alot

Athya Ashraf

सुंदर लेखन!