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बिन बुलाए मेहमान!

टूटा हुआ खुद को पाया है

शरीर में जैसे कोई साया है

दिल भी पिछली गलतियों से उब गया है

आंसू आज – कल रुकते नहीं

मुश्किल हो गया है हालातों को करना बयां

बातें लगातार घूमती है दिमाग में

समझ नहीं आता कि जाऊं कहां भाग में

डरता हूं कहीं लग जाए कोई दाग़ न

इसी तरह करता हूं खुशियों का त्याग मैं

न खाना, न सोना,

ये सब समझ से परे है

पता नहीं

कितने ही लोग ऐसे घुट – घुट कर मरे है

जिस तरफ़ देखूं, बस दिवारे है

जैसे दरवाजे खो गए सारे है

ये अंधेरा मुझे खाने को दौड़ता है

जो मुझे अलग दुनिया से जोड़ता है

जिंदगी जो मैंने थी

उसकी तो जैसे मौत हो गई

ख़त्म हो गई उम्मीदें कई

नियन्त्रण खुद पर अब न रहा

कौन समझेगा?

यह कोई यहां?

कि डिप्रेशन घर आया है

जिसे किसी नहीं बुलाया है

है वो बिन बुलाया मेहमान

जिसकी वज़ह से दिखानी पड़ती है

झूठी मुस्कान।

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Written by Nidhi Dahiya

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Riya Rajkotiya

Awesome
Keep Writing

Ankit

Ye story achi h

Sushmitha Subramani

Instantly touches the heart. Well written.

Neha

Really nicely written dear… It’s showing your perception of depression.. you can definitely try to do for various things…

Sakina Husain

hello nidhi, this is very well written. the description and how it affects is person is brought out in detail. every person is fighting a battle we know nothing about. really appreciable work!

Kritika Bhair

Heart touching:)

Jigyasa vashistha

Thanks alot for this article. Sending you positive vibes✨❤

Yashaswini Bhat

amazing

Jigyasa vashistha

this is insightful, thanks for writing:)

Jigyasa vashistha

amazing!!

Aakriti Lajpal

Hey Nidhi!
I really found your poem noteworthy. Everything has been told of depression through your poem.
Commendable efforts dear

Prathyusha

It’s very Heart touching and deep. I Just loved the way you wrote! Keep it up!