बड़ी मिन्नतों से घरवालों को मनाया था
पढ़ाई जरूरी है ये उनको बतलाया था
आखिरकार मान गए थे वो सब
अब घर से बाहर निकलने का मौका आया था
बहुत खुश थी मैं, कि सपने होंगे पूरे
नज़र लगी तुम्हारी और वह रह गए अधूरे
तुम रोज़ चौंक पर खड़े, करते थे मुझे परेशान
मना करने पर भी किया, अपने झूठे प्यार का गान
दिन – प्रतिदिन हालात हुए बद से बद्तर
न मैं बता सकीं घरवालों को डरकर
डर था कि रूक न जाए मेरी पढ़ाई
सोचा खुद ही जीत जाऊंगी ये लड़ाई
मगर तुम यह सह नहीं पाएं
फेंककर तेज़ाब मुझ पर
जिंदगी भर की लगा दी हाय!
क्यूं? क्या ग़लती थी मेरी?
तुम्हारा झूठा प्यार प्रचार था
मेरा साफ इंकार था
फिर क्यों जला दिया मुझे और मेरे सपनों को
गलती तो शायद बड़ी होगी
जिसकी इतनी दर्दनाक सज़ा हो
बस ठुकराया था प्यार तुम्हारा
और छीन लिया तुमने मेरा हर सहारा
कैसे तुम्हें अपनी गलती का अहसास हो?
कैसे तुम भी मेरी तरह जिन्दा लाश बनो?
कैसे तुम्हारे भी टूट जाए सब ख्वाब?
क्या मैं भी फेंकू तुम पर तेज़ाब?
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