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मैं लड़की!

मेरी क्या गलती थी बता तू

बस एक लड़की थी इसमें मेरा क्या कसूर

क्यूं और किसलिए ये सब ‌किया

मेरा अस्तित्व ही मुझसे छीन लिया

बिना किसी गुनाह, ये सब सहा

नहीं जाता अब मुझसे रहा

वैसे भी जीने का अब मुझे शौक नहीं

मेरी जिंदगी जैसे हो गई अनकही

न तुमसे न इस दुनिया से था मेरा कोई वास्ता

फिर क्यों बन्द कर दिया मेरे ‌लिए हर‌ रास्ता

खुश थी मैं अकेली ही

ये दुनिया थी पहेली सी

थोड़ा हंसती मुस्कुराती

कभी खुद से रुठ जाती

लग गई तुम्हारी नज़र मेरी खुशहाल जिंदगी पर

ऐसे ही गया कुछ वक्त गुजर

लेकिन उस दिन खुद को बचा न सकीं

मन‌ में हुई थी घबराहट – सी

सोचा घर से न निकलूं

मगर न मानी मेरी रूह

कब तक ऐसे खुद को छिपाती

डर कर घर बैठ जाती

कोई न था जिसे ये सब बता पाती

हिम्मत की और आगे बढ़ी

घर से मैं निकल पड़ी

नहीं जानती थी कि वो आखिरी दिन होगा

जिसके लिए मांगी थी तुमने दुआ

डर लगता है तुमसे और तुम्हारे इस जहां से

ख़त्म कर दिया गया मुझे अपनी चाह में

न जाने अब मैं कहां गई, लौट कर न आऊंगी

और न तुम्हारे या किसी और के घर जन्म लें पाऊंगी!!

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35 Points

Written by Nidhi Dahiya

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Riya Rajkotiya

So nice
Keep it up

Amna Alim

that is so awesome!

Lutfia Khan

this is really good!!

Kuldeep

Its great. Well done

Anamta Khan

Wow. Truly amazing work.

Atul

Good

Brinda S

well written!

Monu malik

Termandus work. Continue….

Ankit

Gud work

Kritika Bhair

Well written

Sushmitha Subramani

Well conceptualized.

Jigyasa vashistha

Thanks alot for this article. Sending you positive vibes✨❤

Prathyusha

Wow! This is soo DEEP!

Prathyusha

Beautifully written.I love it!