मेरी क्या गलती थी बता तू
बस एक लड़की थी इसमें मेरा क्या कसूर
क्यूं और किसलिए ये सब किया
मेरा अस्तित्व ही मुझसे छीन लिया
बिना किसी गुनाह, ये सब सहा
नहीं जाता अब मुझसे रहा
वैसे भी जीने का अब मुझे शौक नहीं
मेरी जिंदगी जैसे हो गई अनकही
न तुमसे न इस दुनिया से था मेरा कोई वास्ता
फिर क्यों बन्द कर दिया मेरे लिए हर रास्ता
खुश थी मैं अकेली ही
ये दुनिया थी पहेली सी
थोड़ा हंसती मुस्कुराती
कभी खुद से रुठ जाती
लग गई तुम्हारी नज़र मेरी खुशहाल जिंदगी पर
ऐसे ही गया कुछ वक्त गुजर
लेकिन उस दिन खुद को बचा न सकीं
मन में हुई थी घबराहट – सी
सोचा घर से न निकलूं
मगर न मानी मेरी रूह
कब तक ऐसे खुद को छिपाती
डर कर घर बैठ जाती
कोई न था जिसे ये सब बता पाती
हिम्मत की और आगे बढ़ी
घर से मैं निकल पड़ी
नहीं जानती थी कि वो आखिरी दिन होगा
जिसके लिए मांगी थी तुमने दुआ
डर लगता है तुमसे और तुम्हारे इस जहां से
ख़त्म कर दिया गया मुझे अपनी चाह में
न जाने अब मैं कहां गई, लौट कर न आऊंगी
और न तुम्हारे या किसी और के घर जन्म लें पाऊंगी!!
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