मेरी जिंदगी जैसे बदल ही गई
पहले जैसी कोई बात न रही
दुनिया हुआ करती थी रंगीन
जो अब बेरंग सी बन गई
रातों को नींद हो गई ख़त्म
भूख भी लगने लगी कम
मन मेरा उदास हैं
बुझ गई मेरी प्यास हैं
दिन और रात है बन गए एक समान
मुश्किल में पड़ गई मेरी जान
चुपचाप रहा मैं इसी डर से
कब गया डिप्रेशन की दुनिया में
अब भी मैं मुस्कुरा रहा था
मगर ये काला साया अंदर से मुझे हरा रहा था
रंग तो जैसे मैं भूल ही गया
ऐसे में क्या करें कुछ नया
रंगना चाहता था ख़ुशी से मैं खुद को
मेरा मन, नासमझ बन गया था वो
सुनने को कुछ भी तैयार नहीं
भूलने को राज़ी नहीं जो बातें उसने सही
बिखरा हूं मगर पूरी तरह से हारा नहीं
ये भी यहीं और मैं भी यहीं
मैं न डिप्रेशन को जीतने दूंगा
और न ही मैं अपनी जान लूंगा!
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