क्या देखा कभी, मानसिक रोगी समाज में दिखते नहीं
क्योंकि उन्हें समाज के सब जैसे अधिकार मिलते नहीं
खुद ही मजाक बन जाए या खुद का मजाक बनवाये,
पर क्यों ही वह खुद को पागल कहलवाए
बताकर वह नहीं कराना चहाते अपना अपमान
डर कहीं खो न जाए उनको मिला है जो सम्मान
उनका ये सब सोचना भी ग़लत नहीं
मुश्किल है भुलाना जो बातें घरवालों ने कहीं
कैसे वह किसी को बतलाए
कि घूम रहे हैं अपनी पहचान छुपाए
अंधेरे ने जिंदगी को जकड़ लिया है
भूल चुके उसे जो रोशनी नामक दिया है
ऐसे में किसी का साथ नहीं
न बढ़ा पाता वह अपना हाथ ही
डर है इस खोखले समाज का
परिवार को अपनी लाज का
मगर मानसिक रोग कोई पागलपन नहीं
सोचो ज़रा, स्वस्थ मस्तिष्क होना-ग़लत है या सही?
समाज बदले अपनी सोच को
ताकि चुप्पी तोड़ सके अपनी वो
समझे उन्हें और दें उनका साथ
ज़रा एक बार थामें उनका हाथ।
in हिंदी संग्रह
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