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खुद को बचाना है।

जब मैं ठीक हो जाऊंगा, तो क्या करूंगा?

जब मैं ठीक हो जाऊंगा, क्या पहले जैसा रहूंगा?

क्या पहले से मजबूत बनूंगा?

क्या कुछ नया करूंगा?

क्या इस वक्त से निकल कर, जी पाऊंगा?

या यह सब जिंदगी भर सहूंगा?

क्या मेरा जीवन पहले की तुलना, बेहतर हो पाएगा?

क्या जो सपने देखें थे, उन्हें दोबारा जी पाऊंगा?

क्या अब भी लोग मेरा नाम याद रख पाएंगे?

या समाज के साथ मिलकर भूल जाएंगे?

जिंदगी पहले-सी खुबसूरत नहीं रहेगी

जीने के नियम ही बदल जाएंगे

मगर ये बिखरे हुए टुकड़ों को जोड़ कर

उम्मीद और साहस से

एक नई शुरुआत ही सही रहेगी।

चारों तरफ़ दुनिया अलग और बदली हुई है

सभी चीजें मेरी सीमा में नहीं रही है

लेकिन अब अपने जीवन को पुनः प्राप्त करना है

और उन टूटे हुए सपनों को पूरा करके

जीवन खुशियों से भरना है।

ये स्वस्थ होने की यात्रा में समय लगता है

जो इसे पूरा करें,‌ वह असाधारण रूप से मज़बूत जीवन व्यतीत करता है

मानसिक रोग से लोग मरे, खुद को बचाना आसान नहीं

मगर मुश्किल भी नहीं, अगर जीने के लिए लक्ष्य हो सही।

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Written by Nidhi Dahiya

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