कोई आत्महत्या करके क्या कुछ पाएगा?
क्या वह आत्महत्या से महान बन जाएगा?
कभी सोचा न था कि ये पल भी आएगा
मेरे चारों तरफ़ अंधेरा छाएगा!
मैं था एक औसत विद्यार्थी
जिसकी कुछ परीक्षा ली
मगर मेरे परिणाम से बात न बनी
सबने मिलकर खूब निकाली मेरी कमी!
दिन – प्रतिदिन बढ़ने लगा मेरा गम
हर बात पर आंखें होने लगी नम
कैसे करता अपने दुखों को कम
मजबूरन उठाने पड़ा ये ग़लत क़दम!
अब बचा न था कोई और चारा
चढ़ा था आसमां से ऊंचा मेरा पारा
न मिला मुझे कोई और सहारा
पाना चाहता था हर गम से छुटकारा!
भुलाना चाह रहा था जो सबने कहा
हर वो दर्द जो मैंने सहा
लड़ने का जज़्बा मुझमें न रहा
चल पड़ा वहां, कोई न था जहां!
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